Tuesday 29 May 2018


खैरात-ए-इंसानियत 

ऐ सितारों जमीं पर उतर कर तो देखो ,
न जाने जमाने को क्या हो गया,
अब तो इंसान भी इंसा न रहा ,
कोई हिन्दू तो कोई मुसलमां हो गया,
खुदा ने इंसा को भाई भाई बनाया,
कोई सगा तो कोई ज़हर-ए-क़राबत हो गया,
एक दूसरे को मार के जीते है सब ,
कोई कातिल तो कोई दुश्मन-ए-दिल हो गया,
ऐ सितारों................................हो गया,
एक जमीं थी सब की सब मिलकर रहते थे ,
अब तो कही भारत तो कही पाकिस्तान हो गया ,
एक दूसरे की आँख भी मुनासिब नही इनको,
कोई क़ातिल-ए-बाबस्तगी ,
तो कोई दुश्मन नज़र हो गया,
अब तो रंगों में भी कोई ताल्लुक न रहा ,
लाल हिन्दू तो हरा मुसलमां हो गया ,
दे सकते हो कुछ गर ऐ सितारों,
बस फलक से ऊंचे खयालात देदे,
इस जहाँ के हर इंसान को ,
खैरात-ए-इंसानियत देदे ,
खैरात-ए-इंसानियत देदे |

                                           :-  `वैभव शाक्य (एक सुधा कृति)
                      
this poem is on demand by my dear grandfather
dedicated to him