Sunday 17 June 2018



HAPPY FATHER'S DAY


उनके दिए क़र्ज़ को अदा करना है ,
उनके प्रति हर फ़र्ज़ को पूरा करना है ,
उनके आशीर्वाद से ही सब होना है ,
वो ही है मुझे दुनिया दिखाने वाले ,
वो ही है जीना सिखाने वाले ,
कभी बयां नही किया उन्होंने दर्द मुझसे ,
मेरे हर दर्द ही दवा रखने वाले ,
एक दिन भी जीना उनके बग़ैर ,
ग़वारा नहीं मुझे,
वो ही हैं मुझे प्यार से बुलाने वाले,
ठंडी में कभी ठंड लगी,
गर्मी में गर्म ,
वो ही हैं प्यार की चादर से,
सब को सुलाने वाले ,
वो ही है मेरे चेहरे पर ,
हर मुस्कान की वज़ह ,
वो ही है गुदगुदा के हँसाने वाले ,
जो भी मैंने चाहा वो सब मिला मुझको,
वो ही हैं हर ख्वाहिश पूरी करने वाले,
साथ उनकी सदा परछाई चाहता हूँ,
रब से उनकी लंबी उम्र की फरियाद चाहता हूँ |


                                                                                  :--  वैभव शाक्य (एक सुधा कृति)



Tuesday 29 May 2018


खैरात-ए-इंसानियत 

ऐ सितारों जमीं पर उतर कर तो देखो ,
न जाने जमाने को क्या हो गया,
अब तो इंसान भी इंसा न रहा ,
कोई हिन्दू तो कोई मुसलमां हो गया,
खुदा ने इंसा को भाई भाई बनाया,
कोई सगा तो कोई ज़हर-ए-क़राबत हो गया,
एक दूसरे को मार के जीते है सब ,
कोई कातिल तो कोई दुश्मन-ए-दिल हो गया,
ऐ सितारों................................हो गया,
एक जमीं थी सब की सब मिलकर रहते थे ,
अब तो कही भारत तो कही पाकिस्तान हो गया ,
एक दूसरे की आँख भी मुनासिब नही इनको,
कोई क़ातिल-ए-बाबस्तगी ,
तो कोई दुश्मन नज़र हो गया,
अब तो रंगों में भी कोई ताल्लुक न रहा ,
लाल हिन्दू तो हरा मुसलमां हो गया ,
दे सकते हो कुछ गर ऐ सितारों,
बस फलक से ऊंचे खयालात देदे,
इस जहाँ के हर इंसान को ,
खैरात-ए-इंसानियत देदे ,
खैरात-ए-इंसानियत देदे |

                                           :-  `वैभव शाक्य (एक सुधा कृति)
                      
this poem is on demand by my dear grandfather
dedicated to him  


Friday 20 April 2018

for my beloved papa


जब भी लड़खड़ाता हूँ जिन्दगी की राह में,
आपका वो चलना सिखाना याद आता है,
जब भी कोई गलती करता हूँ,
आपका वो डॉट के समझाना याद आता है,
जब भी आते हैं मेरी आँखों मे आँसू,
आपका वो गुदगुदा के हंसाना याद आता है,
जब भी पाता हूँ कोई मक़ाम ज़िन्दगी में,
आपका वो पीठ पर हाथ फिराना याद आता है,
मेरी परेशानी के पलों में ,
आपका वो मेरे सर पर हाथ याद आता है ,
छोटी उंगलियों से थामा वो हाथ याद आता है ,
चाहता हूँ ज़िन्दगी में हर पल साथ आपका,
हर एहसास मेरा आपके साथ चाहता हूँ,
मेरे सर पर सदा आपका हाथ चाहता हूँ।


                                                                                                                 ----- VAIBHAV SHAKYA


Friday 12 January 2018

First Patriotic Poem(Hindi)


मैं इंतज़ार कर रहा हूँ

मैं इंतज़ार कर रहा हूँ,
संसद के उस सदन का,
काम हो जिसमें कुछ वतन का,
मैं इंतज़ार कर रहा हूँ
खत्म होने का,
आतंकवाद ये जात पात का,
मैं इंतज़ार कर रहा हूँ
उस सोने की चिड़िया का
जो गाती थी गीत हर डाल पर ,
एकता का, विश्वास का
 भाईचारे का,
मैं इंतज़ार कर रहा हूँ,
गांधी की उस लाठी का 
जिसने स्वाद चखाया था,
अंग्रेजों को हिंदुस्तानी माटी का,
मैं इंतज़ार कर रहा हूँ,
लाल की उस दहाड़ का,
बाल की गर्जना का,
और पाल की ललकार का,
मैं इंतज़ार कर रहा हूँ
उस मंदिर का मज़ार का,
जहाँ पाठ हो साथ साथ,
गीता और कुरान का,
मैं इंतज़ार कर रहा हूँ,
उस विद्यालय का,
जहाँ निर्माण हो एक सच्चे इंसान का,
जहाँ ज्ञान हो ,
इन्सानियत का,
सम्मान का,
और देश के निर्माण का,
मैं इंतज़ार कर रहा हूँ,
उस मयखाने का,
जहाँ पान हो देशभक्ति का,
मैं इंतज़ार कर रहा हूँ,
देश की आज़ादी का,
धर्मों के जाल से,
नेताओं की चाल से ,
और भ्रष्टाचार के काल से,
और इंतज़ार है मुझे,
उस संविधान का,
जिसमें सम्मान हो ,
न्याय का ,हर इंसान का,
और एक नया चित्र बने संसार में,
मेरे भारत देश महान का ।





Saturday 6 January 2018

To Beloved (a poem in hindi)



मुझे तुमसे कुछ कहना है,

कहने दे।

मुझे तेरे नसीले होठो पर दो लफ्ज़ लिखने हैं,

मुझे लिखने दे।

मैं तुझे खवाबों में देखना चाहता हुँ,

मुझे वो राते दे।

मैं तुझे खुद में देखना चाहता हूँ,

मुझे वो आईना दे।

मैं तुझे अपना चाँद बनाना चाहता हूँ,

मुझे वो आसमाँ दे।

मैं अपने मकान को घर बनाना चाहता हुँ ,

मुझे अपना साथ दे।

मैं तुझमे खोना चाहता हूँ,

मुझे वो शहर दे।

अब मेरी कलम से बस तेरा नाम ही निकले ,

मुझे वो स्याही दे।

मुझे इश्क़ है तुमसे बस इतना कहने दे,

मुझे तुझमे और खुद को मुझमें रहने दे ।

दुआ है मेरी ख़ुदा से कि,

इश्क़ मेरा कामिल हो जिसमे ,

बस तुम और मैं शामिल हों।